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स्वर्ग का टिकट

शेठ धनीराम तीर्थयात्रा पर निकले

कुछ आवश्यक सामान व एक हजार अशर्फियां थेले में डाल कर साथ ले गए थे। रात्रि विश्नाम के लिए एक धर्मशाला में रुके

वहीं उनकी मुलाकात पड़ोस के गाँव के एक गृहस्थ बांकेलाल से हुयी । बांकेलाल एक गरीब किसान था। धरम करम में भी उसकी रूचि धी और वह भी तीर्थयात्रा के लिए ही निकला था।

धर्मशाला में ही एक आदमी एक कोने में पड़ा कराह रहा था। दोनों यात्री उठकर उसके करीब गए। उसने इशारे से समझाया कि वह चार दिनों से भूखा धा । इतना सुनते ही शेठ धनीराम कनी

काटने के इरादे से बांकेलाल से बोले ” मैं बहुत थक गया हूँ और मुझे नींद भी आ रही है तुम देखो क्या माजरा है। मैं सोने जा रहा हूँ। कुछ जरूरत होगा तो बताना।” शेठ धनीराम तो सोने चले गए बांकेलाल ने पहले उस आदमी को भोजन कराया जो उसने कल के लिए बचा रखा था। उसे भोजन कराकर बांकेलाल को आत्मसंतुष्टि का अहसास हुआ।

भोजन के बाद भी वह आदमी लगातार कराह रहा था । बाकेलाल ने उसे छूकर देखा । वह आदमी भीषण ज्वर से तप रहा था बांकेलाल ने शेठ धनीराम से उसकी हालत के बारे में बताया। शेठ ने रूखेपन से कहा ” इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? मैं कोई वैद्या तो नहीं ?”

सुबह भोर में ही धनीराम आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान कर गए और बांकेलाल ने उस आदमी के इलाज के लिए उसके पास जो धोड़ी पूंजी बची थी सभी खर्च कर दी। अब उसके पास आगे

की तीर्थयात्रा के लिए पैसे नहीं बचे थे । सो मन ही मन भगवन से क्षमा याचना करता हुआ अपने घर पस आ गया।

कुछ ही दिनों बाद शेठ धनीराम भी तीर्थयात्रा कर गाँव वापस आ गए। चारों और शेठजी के दान के ही चर्च थे । एक हजार अशर्फियों का दान कोई कम थोड़े ही था।

बहुत दिन बीते शेठ जी का देहावसान हो गया।

यमराज के दरबार में हाजिर होते हुए शेठजी सोच रहे थे मैंने तो बहुत दान पुण्य किया है मुझे स्वर्ग अवश्य मिलेगा।

इससे पहले की यमराज कुछ फैसला सुनाते यमदूतों ने बांकेलाल की आत्मा को यमराज के सामने पेंश किया। उसे देखते ही यमराज ससम्मान उठ खड़े हुए और यमदूतों को हिदायत देते हुए

बोले ” इन्हें सम्मान सहित दिव्य रथ पर बैठा कर स्वर्ग में पहुंचा आइये सभी देवता इनका वहां इंतजार कर रहे हैं।”

शेठजी विस्मय से बोले ” महाराज ! शायद आपसे कोई गलती हो रही है । यह बांकेलाल तो अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर पाया था जबकि मैंने भगवड्शन के साथ ही हजार अशर्फियों का बड़ा चढ़ावा भी भगवान को चढ़ाया था। इस हिसाब से तो स्वर्ग का हकदार मैं ही हुआ ना ?”

यमराज मंद मंद मुस्कराते हुए बोले “मुख मानव ! इन तुम्हारे अशर्फियों का हम क्या करें ? क्या तुम अपने आपको इतना सक्षम मानने लगे हो की तुम हमें कुछ दे भी सकते हो ? करुणा दया प्रेम जीस हृदय में होता है भगवान का वास भी वहीं होता है वह हर पल तुम्हारे साथ होता है और तुम्हारी हर हरकत पर उसकी पैनी निगाह रहती है। धर्मशाला में तुम दोनों की परीक्षा स्वयं भगवन

ने ली थी जिसमें तुम अपने निज स्वार्थ के कारण अनुतीर्ण साबित हुए हो जबकि बांकेलाल अपनी सहृदयता के कारण भगवान का प्रिय बन गया है और उन्होंने स्वयं ही उसे अपने पास बुलाया है। धन संपत्ति और रुतबे का रौब दिखाकर तो तुम अपने लिए संसार के सभी भौतिक सुख खरीद सकते हो लेकिन स्वर्ग का टिकट नहीं।

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