रणछोड़ कृष्ण (कर्म ही धर्म का मर्म, भाग 3)
कस-वध के बाद उसकी पत्तियाँ अस्ति और प्राप्ति अपने पिता जरासंध की शरण में जाती हैं और अपनी व्यथा कह सुनाती हैं जिसे सुनकर
जरासंध प्रतिशोच की ज्वाला में झुलसने लगता है. जरासंध कस का सबसे शक्तिशाली राजमित्र भी था, उसने छियासी राजाओं को यदी बना रखा धा और पूरे सी होने पर उनकी एक आध बलि देकर अजेय बनना चाहता था उसने अपने सभी साथियों के साथ मंत्रणा करके मथुरा पर आक्रमण कर दिया और एक देश भेज दिया कि मधुरा को सर्वनाश से बजाना चाहते हो तो कृष्ण और बलराम को हम सौंप दो.
कुछ अवसरवादी प्रभावशाली लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में नकली जनमत जुटाने में लग गये जबकि मधुरा का जनमन, कण-कण, तृण-तृण तारणहार कृष्ण के प्राण से बंधा सा लगताधा कृष्ण और बलराम ने जनसंहार को टालने के लिए स्वयं को बलिदान के लिए समर्पित करने का नित्य किया उनकी दिव्य शक्तियों के सामने जरासंध का अहकार धूलिधूसरित हो गया. इस प्रकार उसे सत्रह बार धूल चाटनी पड़ी
अटारी बार अपने सहायक कालवयन की विशाल सेना भी साथ लेकर आया. कालयवन मूल रूप से ऋषि भौशिरायण और अप्सरा रंभा के संयोग से उत्पन्न हुआ पा रभा स्वर्ग लौट गयी और ऋषि ने अपने तपोबल से उसे युद्ध में अजेय बनाकर मलीच देश के नि संतानराजा कालजग को मोद दे दिया.
कालयवन मधुर वासियों को युद्ध के लिए ललकार रहा था कृष्ण ने अफेले ही कालयवन को स्वग से मल्लयुद्ध की चुनौती देकर युद्ध का फैसला कर लेने का प्रस्ताव भेजा. कालयवन सहमत हो गया. कृष्णा पीतांबर चारण करके आये. कालयवन को महकाते और फिर भाग जाते कुछ दूर भागकर रुककर फिर उसे उत्तेजित करते और फिर भाग जाते इस कुशल रणनीति में वे उसे अपने पीछे-पीछे भगाते-भगाते-भगाते लुकाकुपी सी खोलते हुए भागकर एक गुफा में जाकर छिप गये जहाँ मुकुंद जी सोये हुए थे.
मुच्कुद जी राम के पूर्वज परमप्रतापी इक्याकु्यशी राजा मधाता के पुत्र ये. देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता करके उनको विजय दिलाने में सफल हुए. फिर उनसे विदा लेते हुए बोले, ‘मैं अब अपने परिवार के पास लौटना चाहता हूँ
देवता बोले, ‘राजन, आपको मापद यह अनुमान नहीं है कि देवलोक के इस कालंड के साथ-साथ पृथ्वी का कालचक्र सहस्त्रों वाई आगे घूम चुका है.. आपकी ना जाने कितनी पीढियाँ महा काल के प्रया के साथ यह चुकी है. आपको यहाँ शोकसंतप्त एकात ही मिल पायेगा. हमारे कारण यह सब हुआ है आप कोई भी वरदान मांगनीजिये ।
राजा अत्यत प्रगत जीर व्यथित मन स्थिति में डूब गये और अवसाद के कारण विरक्त से होकर बोले, मेरे जीवन में और क्या बचा है ? अब तो यह सब कुछ भूलने के लिए मुझे आप दीर्घकाल के लिए निर्विघ्न निद्रा का वर दीजिये और यदि कोई इसे भग करें तो वह तुरंत भस्म हो जाये ।
देवता योले, ” तथास्तु
सोलहों फलाओं से परिपूर्ण सर्वज्ञ कृष्णा इसी तथ्य को कालयवन के विरुद्ध उपयोग करने के उद्देश्य से एक महान परमार्थ जनकल्याण की कामना के साथ स्वयं छोड़ बनने को तलार होकर कालयवन के साथ यह विलक्षण रणनीति रचा रहे थे कृष्ण गुफा में घुसते ही एक ओर छिप गये और मदोन्मत्त कालयवन उनका पीछा करते-करत बोलाकर प्रिंतवस्त्र ओढकर निद्रामग्न मुकुंद को ही कृष्णा समझकर उनपर पादप्रहार कर दौठा और परिणाम यही हुआ जिसकी इस अद्भुत छलिये सूत्रधार ने प्यूहरचना कर रही थी कालययन मुचकुद जी के नेत्रों में प्रज्ज्वलित कालज्वाला में स्वाहा हो गया भगवान ने सामने आकर मुच्कुद जी को दर्शन देकर शोकमुक्त करके परमानद की अनुभूति करवायी
इसके बाद कृष्ण की प्रेरणा से मधुरावासियों सहित यदुवंश विस्थापित होकर द्वारिका को आपनी राजधानी बनाफर वहीं वास करने लगा और इस प्रकार ब्रज का यह चितचोर, मधुरा का तारणहार, रणछोड बनता हुआ द्वारिकाधीश बन गया. आगे भी ना जाने क्या-क्या रूप घरने वाला है पाह बहुरूपिया मायापति हम लोग जानने और समझने का प्रयास करते रहेंगे बस जुड़े रहे और बंधे रहें इस लघुकधा-अरंखला, ‘कर्म ही धर्म का का मर्म
की हर एक कड़ी के साथ
द्वारा: सुधीर अधीर