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रामायण की अनकही बातें

राजा दशरथ को एक पुत्री भी ची और वह भी राम से बड़ी


राजा दशरथ को चार पुत्र राम, भरत लक्ष्मण और अत्रुघ्न के अतिरिक्त एक पुत्री भी गौ शायद इस बात सो कुछ लोग अवगत नहीं होगा. इस आशय का एक लेख इंडिया टुडे 12 अक्टूबर 2015 के व्वाला स्पेवाल अंक में प्रकाशित हुआ था हालाजि ऐसा विवरण तुलसी या सामाक्ति सामायण में नहीं मिलाता है संभव है कालोपरांत यह जिसी पौराणिक कथा या लोक कथा में रहा हो


इसके अनुसार राजा दशरथ और कौवाल्या को औराम के जन्म के पूर्व एक पुत्री थी – शाता कौशल्या को एक बड़ी बहन ची वर्षिनी जिसका विवाह अगदेश के राजा रोमाघद से हुआ था पर वर्षिनी और रोमपद को कोई संतान न थी एक बार वार्षिनी ने हंसी मजाक में दशरथ से कह दिया था कि उसे दशरथ की संतान चाहिए तो दशरथ ने उसे कहा वह सनकी बेटी ज्ञाता को गोद ले सकती है शांता को वर्षिनी और रोमपद ने गोद ले लिया और इस तरह शांता अगदेश की राजकुमारी बन गयी


বाने शनै: शांता एक सुन्दर युवती उनी वह एक विदुषी थी साध ही करा और पुल कौशल में भी निपुण थी एक दिन जब शाता और रोमपद परस्पर वार्तालाप में व्यस्त थे एक ब्राह्मण राजा से वर्षा ऋतु में खेती में गड सहायता मांगने आश पर रोमपद ने ब्राह्मण की बात पर ध्यान न दिया जिससे वह निसा हो गया और बह राज्य छोड़कर कहीं और चला गया इंदरदेव वर्षा के स्यामी हैं और जाह्मण उनों प्रिय हैं, इस बाह्मण के जापमान में से कोधित हो गए हने रोगपद को दंड देने के लिए उसके राज्य में या नहीं होने दिया और वहां सूखा और अकाल पड़ गणा रोमपद ने समस्या का हल टूटने के लिए लोगों से परामर्श लिया तो उन्हें पता चला कि इस समस्या का माल एक विशुद्ध जनचर्य ब्राह्मण जिनके पास चमत्कारी शक्ति होती है, वहीं कर सकता है


अघि विभाळत का एक पुत्र था कायगा जिसने जगत के बाहर की दुनिया नहीं देसी घी और न ही उसे औरत के अस्तित्व का ज्ञान या अध्यभूगा को आकर्षित करने के लिए रोमपदं अपने


राज्य से सुदर युवतियों को उसके पास भेजने लगा ताकि वह अंगदेश में आ कर दान करे और उसकी आक्ति से राज्य में वर हो ऋष्यगा को किसी तरह मना कर रोमपद अपने राज्य में लाने


में सफल हुआ अषणभृगा की अलौकिक शक्ति से आदेश में पर्याप्त वर्षा हुई राजा ने उसका विवाह अपनी पुत्री शाता से कराया


(एक अन्य कथा के अनुसार जगल में पवित्र अलौकिक शक्ति वाले अपि विभाडक रहते थे शांता के बाद दशरथ को बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुई तो उन्हें अपने उत्तराधिकारी की विता सताने लगी वे सहायता के लिए ऋषि वशिष्ठ के पास गए तो उन्होंने विभाग को लुभाने के लिए अप्सरा उर्वशी को भेजा विभाण्डा विधलित हो गए और उनसे एक पुत्र प्रधाना हुआ विभाण्डक ने पुत्र को विशुद्ध पविता और ब्रह्मचर्य की शिक्षा दी और मध्यमान ही जंगल से बाहर कभी निकले न ही उनको स्त्री के अस्तित्य का कोई जान तक था. बाद में शांता को तिरंगा के पास भेजा गया ताकि वह उसे प्रभावित कर दशरध की पुनप्राति के हेतु यह करने के लिए तैयार हो जाये .या्मीकि रामायण के मालकांड में शष्यणा और शांता की चर्चा है पर वह सारथ की पुरवी थी इसका कहीं उल्लेख नहीं है।


दुचर जब नाजा बजारय को ऋष्यलगा की आनीतिक पाक्ति का समाचार मिला तब वे उसे अपने राज्य में आमंत्रित करना चाहते थे ताकि उसके यज्त द्वारा पुन और राज्य का उत्तराधिकारी प्राज करसके


माय भूगा ने दशरथ की बात मान ली और उसने फुरकामेति रान किया उसने रान का प्रसाद दारया की तीनों रानियों को दिया और कहा कि इसके सैतन से उन्हें पुत्र की प्राप्ति होगी , इसके फलस्वरूप दशरण को अपनी तीन रानियों से चार पुत्र प्राप्त हुर- कौशल्या में राम कैकेयी से भरत और समित्रा से लक्ष्मण और शकुन इन चारों पुलों की चर्चा रामायण में है पर इन भाईयाँ


की बड़ी बहन शांता की पुष्टि रामाषण नहीं करता है


जब रावण धीराम का पुरोहित बना था


भारतवर्ष में विशेष कर उत्तर भारत में तुलसीकृत रामायण यानि रामचरित मानस से ही हमें रामायण के पात्रों के बारे में जानकारी मिलती है राम चरित मानस अवधी भाषा में है रामायण अन्य भाषाओं में भी तिखा गया है इसके अतिरिक्त श्रीलंका में भी उनका अपना रामायण है अलग अलग रामायण में रामायण के पात्रों के बारे में राम चरित मानस में वर्णित तथ्यों में कुछ भिनता है कहा जाता है कि दक्षिण के रामायण में रावण के एक अलग चरित्र की चर्या मिताती है हालांकि व्यक्तिगत रूप से इसवी प्राणामिकता का दावा नहीं कर सकते हैं फिर भी यह एक विशयात कति के प्रोग्राम में बनी आत और श्री श्री रविशंकर के वचन दोनों पर आधारित है बस से रावण का एक अद्भुत पारित दिखता है 


घटना उस समय की है जामा धीराम रागण से युद्ध मारने के लिए संका प्णाने गाते से . श्रीराम रामेश्वरम के सागर राट पर में नागर पार कर लंका विजय के लिए उन्हें अपने इष्ट भगवान् मोकार की पूजा के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करना थी पूजन के लिए उन्हें एक पुरोहित की आवश्यकता थी और वहां कोई पुरोहित उपलब्ध नहीं था . श्रीराम को एक अच्छे पुरोहित की तत्कालआवश्यकता थी.


उस सम राजण का आता विभीषण श्रीराम के पास भा चुक्ता था उसने श्रीराम को रावण को पुरोहित मनाने का सुझाव देते हुए कहा था कि रावण शिवजी का महान भक्त है और इन अनुप्तानों के नियमों के बारे में भलीभाति जानता है , अतः उसे निमंत्रित करना चाहिए कदाचित वहाँ उपस्थित कुछ के मन में सदेह रहा हो कि रावण ती राक्षस कुल का है वह पुरोहित कैसे हो सकता है विभीषण ने कहा कि हालांकि उनकी माता ककसी दानव कुल की थी तथापि रावण के पिता मुनि विधवा और पितामह मुनि पुलस्त्य ये


रावण को श्रीराम के पुरोहित बन पूजा कराने के लिए निमंत्रण भेजा गया जिसे उसने सहर्ष स्वीकार भी किया इतना ही नहीं रावण ने कहा कि वीराम वनवासी है, उनके लिए सभी पूजन


सामग्री आदि की अवस्था यह स्वयं करेंगा रावण ने श्रीराम को कहा कि आप विवाहिता है और ऐसे अनुक्षान में श्रीराम की पत्नी का होना अनिवार्य है उनके बिना पूजन सम्पन्न नहीं हो


सकती है राम ने कहा कि मैं सीताजी की प्रतिमा बना कर पूजा कर सकता हैं ..रावण ने कहा कि वह पूजन में विकल्प को स्वीकार नहीं करेगा श्रीराम ने कहा कि आप पुरोहित हैं और


पानी की अनुपस्थिति में विकल्प जताना पुरोहित का धाम है रावण ने सीता को पूजन स्थान पर लाने की व्यवा की और कहा कि पूजा के बाद पुनः उन तका जापला जाना होगा सीताजी


श्रीराम के साथ पूजा में बैठी


रावण में विधि विधान से पूजा सम्पळ कराया – पूजा के बाद श्रीराम और सीताजी दोनों ने पुरोहित रावण का चरणस्पर्श कर उनको आशीर्वाद लिया . रावण ने लीराम को विजयी भ’ और सीताजी को सुमंगली भाव का आशीवाद दिया था .


रायण न सिर्फ मास शिवभक्त या मालिक वा एका विज्ञान भी था इसीलिए जब वह रणभूमि में श्रीराम द्वारा परास्त हो कर मुन्मु के निकट था, शराम ने अपने माता लक्ष्मण को उसके निकट जाकर उसके चरण स्पर्श कर उससे कुछ जान मार करने के लिए कहा था जब लक्ष्मण ने तयण से शिक्षा ले ली तब श्रीराम भी साण के पास गए तब रावण की आत्मा उसके शरीर से निकल कर औराम में प्रवेश कर गयी कहा जाता है कि कदाचित यहीं दक्षिणा पुरोहित रावण ने श्रीराम में मांगी थी,

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