शिव गौरी का अलौकिक प्रेम अद्भुत, अद्वितीय है। पागल दुनिया उन्हें औधड, जंगली तथा बावरा कहतीं, जबकि उनके प्रेम में पागल पार्वती परमेश्वर रूप को परख चुकी थी। शिव को पाने की लालसा में, गहन वन को तपस्पा रत होने चली | शिव अपनी जन्म जन्मांतर की अद्धांगिनी से अलग ही कब से आ गए, वरदान देने! अंधा क्या थाहे, दो आखें पार्वती जी को शिव का अासन मिल गया। परंतु लोकाचार अभी रोष था। शिव अपनी बारात में भूत देताल. दो चार मुख, बेमुख और बिना हाथ पैर वाले बाराती लेकर हिमाचल जी के घर पहुंचे अपने गले में सर्प हार, कानों में वृश्चिक कुडल, हाथ में डमरू, त्रिशूल, अग में भस्म तथा मुगछाल धारण किए शिव नदी पर सवार तीनों लोकों के अनन्य दुल्हा लग रहे थे। भिन्न प्रकार की भयावह ध्वनियों से पूरा वातावरण सहम गया । असली रुप सिर्फ गौरा को दृश्य था, जिसपर वो मोहित थीं |माँ के अतिशप दुलार ने तपस्वी भेषज शिव को अपनी पुत्री देना स्वीकार नहीं किया। कभी गौरा का सुंदर सुकोमल मुख देखती तो कभी भूतनाथ का डरावना स्वरूप कहीं से कोई मेल नहीं था तब गौरा व्याकुल हो उठीं कि कहीं इस विशिष्ट प्रेम को पाने में कोई विघ्न ना आ जाए पार्वती ने शिव का ध्यान लगाकर विनती की “हे महेश्वर, आप मेरे परिजनों को संतुष्ट करने के लिए अपना वास्तविक, मोहक स्वरूप दिखाए, नहीं तो अंधेर की आशका है परस्पर प्रीत में शिव ने आकर्षक वर रुप रखा और प्रसन्नता पूर्वक शिव पार्वती का पाणिग्रहण संस्कार संपन्न हुआ तो ऐसी अनूठी प्रेम कथा है हमारे देवाधिदेव शिव और शक्ति स्वरूपा पार्वती की युग युगांतर की यह प्रणय कथा अत्यंत सुखदायी, सरस और सर्वप्रिय है ।जय अर्द्धनारीश्वर की..